सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अधिगम क्या है ?

 

अधिगम क्या है ?


अधिगम (Learning) एक ऐसा प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति नए ज्ञान, कौशल, व्यवहार और दृष्टिकोण को प्राप्त करता है,

समझता है और उसे लागू करता है। यह प्रक्रिया विभिन्न तरीकों से हो सकती है, जैसे कि अनुभव, अध्ययन, अनुदेश,

और अभ्यास के माध्यम से।


अधिगम की प्रक्रिया में ये मुख्य तत्व शामिल होते हैं:


1. प्राप्ति (Acquisition): नए जानकारी या कौशल को ग्रहण करना।

2. समझना (Understanding): प्राप्त की गई जानकारी या कौशल को समझना और उसका अर्थ निकालना।

3. स्मृति (Memory): जानकारी या कौशल को याद रखना और समय के साथ उसे सहेजना।

4. अनुप्रयोग (Application): सीखी गई जानकारी या कौशल को वास्तविक जीवन में लागू करना।

5. विश्लेषण (Analysis): सीखी गई जानकारी या कौशल का विश्लेषण और उसका आकलन करना।

6. सृजन (Creation): नए विचारों, उत्पादों या दृष्टिकोणों का निर्माण करना।


अधिगम का अध्ययन विभिन्न शैक्षिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणों से किया जाता है, और यह प्रक्रिया व्यक्ति के जीवनभर

चलती रहती है।

अधिगम की कई परिभाषाएँ हैं, जो विभिन्न विद्वानों और शोधकर्ताओं द्वारा दी गई हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ दी गई हैं:

 हिलगार्ड और एटकिंसन:

  • "अधिगम अनुभव का वह प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन व्यवहार में या व्यवहार की

संभावना में होता है।"

किम्बल (Kimble):

  • "अधिगम एक अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन है, जो अभ्यास या अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में उत्पन्न

होता है।"

हल (Hull):

  • "अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा गतिविधियों में व्यवहार में बदलाव लाया जाता है।"


स्किनर:

  • "अधिगम व्यवहार में परिवर्तन की एक प्रक्रिया है, जो प्रतिक्रिया की पुनरावृत्ति के परिणामस्वरूप होती है।"

क्रो और क्रो:

  • "अधिगम एक प्रकार का मानसिक क्रिया-कलाप है, जिसके द्वारा व्यवहार में परिवर्तन होता है और इस परिवर्तन

को अभ्यास के द्वारा स्थायी बनाया जा सकता है।"

गेट्स:

  • "अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति पिछले अनुभवों के आधार पर नए अनुभव प्राप्त करता है।"



वुडवर्थ:

  • "अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से अनुभव का संचय होता है और यह व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन

लाता है।"

जे.एस. ब्रूनर:

  • "अधिगम एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति को अनुभव के माध्यम से ज्ञान का निर्माण करना होता है।"


पावलोव (Ivan Pavlov):

  •  "अधिगम एक स्थायी परिवर्तन है जो अभ्यास और अनुभव के परिणामस्वरूप होता है।"

जॉन डीवी (John Dewey):

  •  "अधिगम निरंतर पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति और समाज के बीच अनुभवों का संचयन होता है।"

गैग्ने (Robert Gagné):

  •  "अधिगम पर्यावरण के साथ इंटरैक्शन के परिणामस्वरूप क्षमता में परिवर्तन है, जो व्यवहार में परिवर्तन के

रूप में व्यक्त होता है।"

अधिगम के सिद्धांत

अधिगम के कई सिद्धांत हैं जो इस प्रक्रिया को समझने में मदद करते हैं। कुछ प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:

  • क्रियाप्रसूत अनुबन्धन: यह सिद्धांत बताता है कि अनुभवों के आधार पर व्यवहारों को मजबूत या कमजोर किया

जा सकता है।
  • अवलोकन अधिगम: यह सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति दूसरों को देखकर सीख सकते हैं।

  • संज्ञानात्मक अधिगम: यह सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति जानकारी को कैसे समझते हैं, याद करते हैं और उसका

उपयोग करते हैं।

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थार्नडाइक ने सीखने के कुछ नियमों की खोज की जिन्हें उसने दो वर्गों में विभक्त किया :

(1 ) मुख्य नियम ,(2) गौण नियम 

मुख्य नियम तीन हैं - a ) तत्परता का नियम ,b ) अभ्यास का नियम ,c ) प्रभाव का नियम

गौण नियम 5 हैं - a)बहु-अनुक्रिया का नियम , b)मानसिक स्थिति का नियम ,c)आंशिक क्रिया का नियम , 

d)समानता का नियम, e)साहचर्य परिवर्तन का नियम

अधिगम की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं:

  • व्यवहार में परिवर्तन: अधिगम के परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में स्थायी या अस्थायी परिवर्तन होता है।

  • अनुभवों से प्रभावित: अधिगम व्यक्ति के अनुभवों से प्रभावित होता है, चाहे वे सकारात्मक हों या

नकारात्मक।
  • प्रक्रिया: अधिगम एक गतिशील प्रक्रिया है जो लगातार जारी रहती है।

  • सक्रिय भागीदारी: अधिगम में व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी आवश्यक होती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वाइगोत्सकी का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत:Vygotsky's theory of cognitive development

  वाइगोत्सकी का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत : सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत के नाम से भी जाना जाने वाला, वाइगोत्सकी का सिद्धांत यह बताता है कि बच्चों का संज्ञानात्मक विकास सामाजिक और सांस्कृतिकपरिस्थितियों से गहराई से प्रभावित होता है। सिद्धांत की मुख्य अवधारणाएं: सांस्कृतिक उपकरण: भाषा, प्रतीक और प्रौद्योगिकी जैसे साधन जो सोच को आकार देते हैं। सामाजिक संपर्क: ज्ञान और कौशल का विकास, अनुभवी व्यक्तियों (जैसे माता-पिता, शिक्षक) के साथ सहयोग और बातचीत के माध्यम से होता है। समीपस्थ विकास का क्षेत्र (ZPD): विकास की क्षमता का स्तर जो स्वतंत्र रूप से प्राप्त करने से अधिक है, सहायता के साथ प्राप्त किया जा सकता है। Saffolding: अधिक जानकार व्यक्ति द्वारा प्रदान किया गया समर्थन जो बच्चों को ZPD में कार्यों को पूरा करने में मदद करता है। आंतरिक भाषण: सोचने का एक आंतरिक रूप जो भाषा के माध्यम से विकसित होता है। सिद्धांत का महत्व: शिक्षा में, ZPD और Saffolding की अवधारणाएं अनुदेशात्मक रणनीतियों को सूचित करती हैं जो छात्रों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद करती हैं। यह सहयो...

बच्चों में संवेगात्मक विकास :John Bowlby theory

  Q. बच्चों में संवेगात्मक विकास के संदर्भ में जॉन बाल्बी का सिद्धांत क्या है ? Ans. जॉन बाल्बी (John Bowlby) एक प्रमुख ब्रिटिश प्रारंभिक बाल विकास अध्येता थे जिन्होंने 'आसक्ति सिद्धांत' (Attachment Theory) को विकसित किया। यह सिद्धांत बच्चों के संवेगात्मक विकास के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। आसक्ति सिद्धांत के अनुसार, बच्चे अपने प्राथमिक देखभालक (अक्सर माता-पिता) के साथ गहरे आसक्ति की आवश्यकता महसूस करते हैं। इस संवेगात्मक आसक्ति के तत्व बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाल्बी के सिद्धांत के अनुसार, इस आसक्ति का निर्माण चार मुख्य प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है: आसक्ति के बोंडिंग (Attachment Bonding): बच्चे एक स्थिर, नियमित और आस्तिक रिश्ता बनाते हैं अपने प्राथमिक देखभालक के साथ। यह रिश्ता सुरक्षित और आत्मविश्वास के भावनात्मक माध्यम के रूप में काम करता है। आसक्ति के स्थिरीकरण (Attachment Consolidation): इसमें बच्चे अपने प्राथमिक देखभालक के साथ आसक्ति को अधिक स्थिर बनाने के लिए नवीनतम अनुभवों का आधार बनाते हैं। आसक्ति की प्रतिरक्षा (Attachment Resistance): बाल्बी ...

भारत में प्राथमिक शिक्षा: भविष्य के लिए एक आधार (2024)

 भारत में प्राथमिक शिक्षा: भविष्य के लिए एक आधार (2024) भारत में प्राथमिक शिक्षा देश की शिक्षा प्रणाली की आधारशिला है। यह वह चरण है जहाँ युवा दिमाग सीखने की अपनी यात्रा शुरू करते हैं, मौलिक कौशल और ज्ञान प्राप्त करते हैं जो उनके भविष्य को आकार देंगे। 2024 में, भारत में प्राथमिक शिक्षा पहुँच, गुणवत्ता और समानता में सुधार के लिए चल रहे प्रयासों के साथ ध्यान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बनी रहेगी। भारत में प्राथमिक शिक्षा का महत्व भारत में प्राथमिक शिक्षा केवल पढ़ने और लिखने से कहीं अधिक है। यह एक बच्चे की जिज्ञासा को पोषित करने, आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने और उनके समग्र विकास में योगदान देने वाले मूल्यों को स्थापित करने के बारे में है। भारत में प्राथमिक शिक्षा में एक मजबूत आधार निम्न के लिए आवश्यक है: व्यक्तिगत विकास: भारत में प्राथमिक शिक्षा व्यक्तियों को अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने, उच्च शिक्षा और बेहतर करियर के अवसरों के द्वार खोलने में सक्षम बनाती है। सामाजिक प्रगति: भारत में प्राथमिक शिक्षा समानता को बढ़ावा देने, गरीबी को कम करने और अधिक सूचित और सक्रिय नागरिकों को बढ़ावा देने के ...